Tuesday, 10 April 2018

केसे एक योद्धा ने मुस्लिमो आक्रमणकारियों को धुल चटाई ( Rajput history )

Bhati History Doongar singh ji 

Bhati History

दोस्तों Rajasthan की भूमि वीरो और बलिदान की भूमि है। Rajasthan की भूमि एसी रही हे की यहाँ एक गज पर राजपूती खून न बहा हो, और जहाँ बिना जुंझार के कोई युद्ध हुआ हो। भारत को मुस्लिम आक्रान्ताओ से बचाने के लिए लाखो राजपूत योद्धाओ और वीरो ने अपना खून बहाया. राजपूतो और तत्कालीन राजा महाराजो की इतिहास के प्रति उदासीनता के कारण इतिहास सही ढंग से लोगो के सामने नहीं आ पाया. इस कारण बहुत सी वीर गाथाये इतिहास के पन्नों में दब गयी।
तो दोस्तों आज हम बात करेंगे एक ऐसे ही वीर योद्धा के बारे में जोकि हे योद्धा डूंगर सिंह जी . यह उस वक्त की बात हे जब जैसलमेर और बहावलपुर (वर्तमान पाकिस्तान में) दो पड़ोसी राज्य हुआ करते  थे। बहावलपुर के मुस्लिम शासक की सेना आये दिन जैसलमेर राज्य के आसपास के क्षेत्रो में डकैती और लूट करती थी लेकिन कभी भी जैसलमेर के भाटी वंश के शासको से टकराने की हिम्मत की उन्ही दिनों जब डूंगर सिंह जी,( जैसलमेर महारावल के छोटे भाई के पुत्र ) और उनके भतीजे चाहड़ सिंह जी, दोनों हि जैसलमेर और बहावलपुर की सीमा से कुछ दुरी पर तालाब में स्नान कर रहे थे। तभी उन्हें बहुत जोर से शोर सुनाई दिया । तो दोनों ही अपने घोड़ो को लेकर शोर की दिशा में निकले तो उन्होंने देखा की बहावलपुर के नवाब की सेना की एक टुकड़ी जैसलमेर रियासत के ही ब्राह्मणों के गाँव "काठाडी" से लूटपाट कर अपने ऊँटो पर लूटा हुआ सामान और साथ में गाय, ब्राह्मणों की औरतो को अपहरण कर जबरदस्ती ले जा रही है। तभी डूंगर सिंह जी  ने भतीजे ( चाहड़ सिंह ) से कहा की तुम जैसलमेर जाओ और वहा महारावल से सेना ले आओ तब तक में इन्हें यही रोकता हूँ। लेकिन चाहड़ सिंह जी समझ गए थे की ककोसा मेरा कुछ दिन पूर्व ही विवाह होने के कारण मुझे यहाँ भेज रहे हैँ। जब काफी समझाने पर भी चाहड़ नही माने तो दोनों ही अपने राज्य के लोगो को बचाने के लिए मुस्लिम सेना की ओर अपने घोड़ो पर तलवार लिए दौडे और टुकडी पर टूट पड़े और देखते ही देखते बहावलपुर सेना की टुकड़ी के लाशो के ढेर गिरने लगे। कुछ समय बाद वीर चाहड़ सिंह (भतीजे)  वीर गति को प्राप्त हो गए जिसे देख क्रोधित डूंगर सिंह जी ने दुगुने वेश में युद्ध लड़ना शुरू कर दिया। तभी एक मुस्लिम सैनिक ने पीछे से वार किया और इसी वार के साथ उनका शीश उनके धड़ से अलग हो गया।

किवदंती के अनुसार, शीश गिरते वक़्त उन्होंने अपने घोड़े से बोला-"बाजू मेरा और आँखें तेरी"

घोड़े ने अपनी स्वामी भक्ति दिखाई व धड़, शीश कटने के बाद भी लड़ता रहा जिससे मुस्लिम सैनिक डरकर  भाग खड़े हुए और डूंगर सिंह जी का धड़ घोड़े पर पाकिस्तान के बहावलपुर के पास पहुंच गया। तब लोग बहावलपुर नवाब के पास पहुंचे और कहा की एक बिना मुंड आदमी बहावलपुर की तरफ उनकी टुकडी को खत्म कर जैसलमेर की और से आ रहा है।
बहावलपुर में है जहाँ डूंगर सिंह भाटी जी का धड़ गिरा, वहाँ इस योद्धा को मुण्डापीर कहा जाता है। इस राजपूत वीर की समाधी पर उनकी याद में हर साल मेला लगता है और मुसलमानो द्वारा चादर चढ़ाई जाती है। वहीँ दूसरी ओर भारत के जैसलमेर का मोकला गाँव है, जहाँ उनका सिर कट कर गिरा उसे डूंगरपीर कहा जाता है। यहाँ एक मंदिर बनाया हुआ है और हर रोज पूजा अर्चना की जाती है।

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