क्षत्रिय वंशावली
विश्व विज्ञान की प्रथम तर्क
क्षत्रिय ३६ वंश वर्णन
विश्व रचना के विषय में अनेकानेक मत सिद्धान्त है । पुराणों की विश्व रचना भी एक नहीं जेसे श्री मद् भागवत में विष्णु से, शिव पुराण में शिव से लिंग पुराण में लिंग से, गणेश पुराण में गणेशजी से । वेदान्ती और प्रकार से, सांख्य वाले अन्य भांति से, अणुवाद अणु से तथा समाजवादी अन्य प्रकार से, पारिश्रमिक विज्ञानी कीटे, मतस्य अदि से, मनुष्यों एवं सजीव सृष्टी की उत्पत्ती मान रहे हैं ।इस पर विचार होता है कि नित्य प्रलय और महा प्रलय अनेक बार हो चुकी है जिसमें समय समय पर भिन्न भिन्न प्रकार से मनुष्यों की उत्पति हुई होगी । इसका कारण सर्व ग्रन्थों में एक नहीं।
भारत ज्योतिष सिद्धान्त के अनुसार यह स्मृष्टि प्राय: दो अरब वर्ष पूर्व मानी गई है, निश्चयता प्रमाण तो वही जानता है जिसने इसे सर्जन किया है। अतः इस पर विचार होता है –कि सर्व सत्य जग्दधारी
ब्रह्मा, जगत के अधार पूर्ण ब्रह्मा ही है, न तो जल है न कूर्म, न मेंढक है, न शेष है, न अनन्त है, वही जल वहो कूर्म वही शेष आदि सब भूतात्मा परम ब्रह्म परमात्मा ही अवशेष है । सर्व खेल उनकी माया के प्रभाव से अविभूत एवं विक्त हो रहा है । इनके अतिरिक्त सर्व प्रमाण कल्पना मात्र है किन्तु ब्रह्म माया ( प्रकृति ) जीव अंतरिक्ष ( आकाश ) और कर्म यह पांच वस्तु नित्य अर्थात अविनाशी है। ऐसे तो किसी वस्तु का भी नाश नहीं होता अणु रूप में पांच ' तत्वों का भी अस्तित्व है और सर्व अणु प्रकृति में लीन रहते है यह प्रमाण सर्वस मान्य है ।
जीव ब्रह्म चैतन्य है, माया तय कर्म आदि जड़ है.इनका कर्ता ब्रह्मा और जीव है । वेदान्तियों ने जीव ब्रह्म की एकता मानी है । दूतवाद में स्वामी सेवक, उपास्य उपासक सर्वज्ञ, अल्पघ्य माने है । माया स्वतन्त्र कुछ नहीं कर सकती शुद्ध माया से ब्रह्मा का संयोग होने पर महत्व ( सचेतन ) होने की शक्ति माया में उत्पन्न हुई, जिससे अहंकार ( शक्ति ) अभिमान, चंचलता, क्रिया आदि कुछ भी कहे उत्पन्न हुआ उसमें तीन गुणों की सत्व ( ज्ञान ) रज ( गति ) तम ( जड़ता ) उत्पत्ति हुई.अहंकार विशेषण है । पश्चिमी उत्क्रांति बाद सत्व रज, तम के स्थान में, गति और उष्णता का मान किया गया है ।
प्रथम अन्तरिक्ष में वायु उत्पन्न होकर आकाश से शब्द और वायु से स्पर्श उत्पन्न हुआ, स्पर्श से विधुत ( अग्नि ) उत्पन्न हुई । जिससे रूप बना । पुनः इन तीनों के प्रभाव से जल के अणुओ से संग्रह होकर जल बना। जल से रस की उत्पति हुई जल सर्वत्र घुमने से पृथ्वी के अणु इकट्टे होकर प्रथ्वी का आविभार्व हुआ।प्रथ्वी और जय के प्रभाव से अन्य वनस्पति औषधि आदि उत्पन्न हुये अन्नादि से वीर्य, वीर्य से मनुष्य उत्पन्न हुए ।
प्रश्न:- मनुष्यों क उत्पन्न हुये बिना वीर्य किससे उत्पन्न हुवा ( उत्तर ) वीर्य केवल मनुष्यों के शुक को ही नहीं कहा जाता है वीर्य सर्व वनस्पतियों से उत्पन्न होता है जेसे रस, फूल,फल, उनके भी कई सुक्षम से सुक्षम, रस,प्रयाग, षटरस, आदि जिसके प्रभाव से अनेक जीव जन्तुओं की उत्पति होती है । जैसे लघु २ कीटों से भंवरी, भंवरी से पतंगे, पतंगे से कातरे लट आदि गन्ध रस आदि से स्वेदज ,स्वेदज से अन्डज, अम्डज आदि से जरायुज आदि उत्पन्न हो सकते है । जो मनुष्य प्रथम बने वह हम व्यक्त करते है।
पुनः उससे (माया ब्रह्मा) से महतव ( सचेतन ) प्रगट हुआ सचेतना आने पर पंच तन्मात्रायें शब्द, स्पर्श, रूप रस और गन्ध । इन पंच तन्मात्रा से पंच महाभूत शब्द से आकाश: स्पर्श से वायु, रूप से अग्नि, रस से जल, गन्ध से पृथ्वी इस प्रकार उत्पन हुये ।
पंच तत्वों के कार्य-सतोगुण से पांच (ज्ञानेन्द्रियां), आकाश से श्रोत (कान) वायु से (त्वचा ), अग्नि से (नेत्र) जल से ( जिव्हा ) प्रथ्वी से ( नासिका ) पंचतत्वो के रजोगुण से कर्मेन्द्रियां उत्पन्न हुई आकाश से (वाक्य) वायु से (श्रोत) अग्नि से (चरण) जल से (उपस्थ) पृथ्वी से (गुदा).
पांचों महाभूतों के सतोगुण से--चारों अन्तः करण (चित, मन, बुद्धि, अहंकार) पंचभूतों के रजोगुण से पांच वायु (प्राण. अपान, समान, बयान उदान) तमोगुण से समधातु (रस, रक्त, मास
मेद, हड्डी, मज्जा, वीर्य) इनसब से हिरण्य गर्भ से साकार रूप नारायण ( विष्णु ) भगवान.
ज्ञानेन्द्रिय कर्मेन्द्रिय
आध्यात्म | आधिदेव | आधिभूत | आध्यात्म | आधिदेव | आधिभूत |
श्रोत | अकाश | शब्द | वाक | अग्नि | वाक्य |
त्वचा | वायु | स्पर्श | कर | इन्द्र | लेनदेन |
चशु | अग्नि(रवि) | रूप | पद | उपेन्द्र | चलन |
जिव्हा | जल (वरुण) | रस | उपस्थ | प्रजापति | विषय |
नाशिका | अश्विनीकुमार | गंध | गुदा | यम | मल त्याग |
अन्तः करण त्रिपुटी
आध्यात्म | बुद्धि | मन | चित | अहंकार |
अधि | ब्रम्हा | चन्द्रमा | रूद्र | |
अधिभूत | निश्चय | संकल्प विकल्प | चिन्तन | अहंपन |
पांच तत्वों का २५ प्रति
तत्व | रंग | स्थान | आकाश | वायु | तेज | जल | प्रथ्वी |
नभ | नीला | शीश | लोभ | प्रसारण | निंद्रा | लार | राम |
वायु | हरा | नाभि | काम | धावन | कांति | शुक्र | नाडी |
तेज | लाल | पीता | क्रोध | बलन | आलस्य | रक्त | मांस |
जल | सफ़ेद | ललाट | मोह | चलन | तृषा | मूत्र | त्वचा |
- | - | कलेजा | भय | संकोचन | - | पसीना | हड्डी |
शरीर लिंग कोष वर्णन
इस शरीर में ३ लिंग (शरीर) ५ कोष २४ तत्व निम्न है ।
२ सूक्ष्म-शरीर में ३ कोष है--प्राणमय कोष जिस में ५ वायु है ।
२ मनोमय कोष जिसमें पांच कर्मेन्द्रियां है और मन है ।
३ विज्ञानमय कोष जिसमें ज्ञानेन्द्रिय ५ पांचो है ।
३ कारण शरीर में आनन्दमय कोष है.
चोबींस तत्व वर्णन:-
महतघ १ अकार १ तन्मात्रायें ५ प्रकृति १ इन्द्रिय १० मन १ महाभूत ५ से २४ तत्व तीन शरीर पंचकोष बनकर शरीर रूपी घर के अन्दर अज्ञान (मलोन माया व अविद्या में चिदानन्द चैतन्य का प्रतिबिम्ब (करेन्ट) आया हुआ है सो ही यह जीव (आत्मा) जो शुभा शुभ कर्मो के अधीन होकर प्रविष्ट हुआ, और मन रूपी दूत के बश में होकर निवास करने लगा इस जीवयुक्त शरीर को बुद्धि मान लोग देही मेद चोरासी लाख योनियों हुई. चौरासी ६ लाख
जल चर १० लक्ष पक्षी ११ लक्ष कृः २० लक्ष पशु ३० लक्ष स्थावर (वृक्ष ) ४ लक्ष मनुष्य योनियों चार लक्ष अन्य प्रकार की योनिया अन्य लोकों में है लोकों की कोई संख्था नहीं है अनन्त लोक ब्रह्माण्ड में स्थित हे.
अगला भाग:- Rajput history in hindi part - 2
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