चौरसिया खांप का निर्माण:-
जालोन के चौहान वंश के कान्हड़देव की लड़की को शादी जब चित्तोड़ के राणाजी भीम सिंह के साथ हो गई तब इसने एक नये समाज की रचना कर दी । जो कि आगे चलकर ‘चौरसिया’ नाम से पुकारे जाने लगी। कारण यह था कि यह शादी नहीं बल्कि पूर्व विवाह था। जिसको क्षत्री समाज ने उचित नहीं समझा, उसका फल यह हुआ कि जिन गरीब राजपूतों की अधिक अवस्था (उम्र) हो जाने पर विवाह नहीं होते थे, उन्होंने इसी प्रस्ताव (रिवाज-चल न) को मानकर विधवा विवाह करना शुरू कर दिया। उनके विवाह तो हो गये, परन्तु जाति बिरादरी ने उन्हें अलग कर दिया । जब ऐसे राजपूत अलग कर दिये गये, तब इन्होंने मिलकर अपनी अलग बिदरी (चौरसिया जाति) बना लो। विधवा विवाह को उस देश में नाता कहते हैं । इस प्रकार जिन राजपूतों में इन्होंने शादी करलो या करदी, वह भी इस समुदाय में मिल गया। इस प्रकार १४ कुरी और ८४ खांपों के इकट्ठा हो जाने पर इस वृहद स मुदाय का नाम चौरसिया’ हो गया । यह समाज मारवाड़ से लेकर मेवाड़ तक अनेक परगनों में बसी हुई है । जैसे—पाली, वालो, साचोराजसवन्तपुराजालौर, मणाली, गौड़वाड़ा, डोड़, बाणा, पंचभद्रा, साभर आदि अनेक स्थानों में जाकर बस गये हैं। समसुमारी मारवाड़)चौरसिया का दूसरा कारण:-
राजा हमीर लक्षमणसिंह के ज्येष्ठ अरिसिह का पुत्र था। जब चित्तौड़ का विवंश हुआ था उस समय राणा हमीरअपने नानाजी के यहाँ केलवाड़ा में रहता था। उस समय राठौड़ वंशीध राजा मालदेव दिल्ली की यवन सैनिक सहायता से चित्तौड़ का राज्य करता था। एक दिन चित्तौड़गढ़ से मालवा नगर में एक दूत द्वारा हमीर के पास विवाह का समाचार भेजा, उस समय हमीर की अवस्था १२ वर्ष की थी। हमीर विवाह का समाचार सुनकर ५०० घुड़ सवार लेकर चित्तौड़गढ़ की चल दिया। चितौड़गढ़ पहुँचने पर हमीर को कोई विवाह का उत्सव नजर नहीं आया, पैरन्तु वह बढ़ता ही चला गया और महलों में पहुंचकर उसने राठौड़ मालदेव के यहां विवाह कर लिया। जब महल में नववधु विवाहिता के पास में गया तो नवविवाहिता ने पति के संदेह और दु:ख को दूर कर दिया, और कहा कि मैं विधवा हैं । विधवा विवाह उस समय बड़ा ही अनुचित था। इस कारण तुरन्त ही राणा मीर अपमान का बदला लेने के लिए तैय्यार हुआ। किन्तु नववधु ने उसे बहुत रोका और समय की प्रतीक्षा करने की सलाह दी। राणाजो शान्त हो गये इसी मालदेव की पुत्री के गर्भ से हमीर के ज्येष्ठ पुत्र खेम मसिह का जन्म हुआ था। इस
प्रस्ताव से मेवाड़ में विधवा विवाह का प्रचलन हो गया । राजपूतों को सन्तानों ने मिलकर एक समुदाय का गठन करलिया। जो ८४ चौरसिया नाम से प्रसिद्ध हो गई ।
It's very important for us
ReplyDeletewow
ReplyDeleteChaurasia rajput joke
ReplyDeleteTum dusre chaurasia ho Chourasiya Rajput alag hote he Rajsthan se jude hue
DeleteChorsia ko rajsthan me bhomiya rajput kaha jata hai
DeleteChaurasiya is always be king
ReplyDeleteHistory bohot ajeeb hai... iske details khan hain, I mean aap proof kaise kr rhe... source
ReplyDelete👌
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