राजपूत कच्छावा वंश की उत्पत्ती और शाखाये :-
श्री रामचन्द्रजी के अनुज सौमित्र से है । सौमित्र की ५६वीं पीढ़ी में द्वितीय सुमित्र हए थे। जिनके कई पुत्र थे, जिनमें एक लड़के का नाम "कुर्मजी' था उनकी संतान कक्षा जो थी। उस राजा के नाम के कारण 'कछवाया” संज्ञा हुई । इस वंश में क्र मश: बड़े-बड़े शूरवीर, पराक्रमी राजा होते आये हैं, जिनमें एक राजा का नाम सूर्य देव था, जिन्हें लोग (राज्य) में सुनहपाल नाम से पुकारते थे । इन्होंने ही ग्वालियर का प्रसिद्ध किला बनवाया था, जो परिहारों से युद्ध के कारण इनके हाथ से चला गया। कच्छावा का ही अपर नाम कुशवाह है जो वर्तमान में जम्मू राज्य में रहते हैं । ऐसी कहावत प्रसिद्ध है कि इनका राज्य रोहत सगढ़ में था। कुछ काल के बाद नरवर का। प्रसिद्ध किला राजा नल" ने बनवाया था जो प्रसिद्ध राजा नल’ वि० से ६४३ में गद्दी पर बैठे थे । वि० सं० १०२३ में सोडदेव हुए, जिनके समय में इस कच्छावा वंश की कुल देवी जामवाय माता प्रसिद्ध हुई । इसी वंश में सवाई जयसिंह पेदा। हए थे, जिन्होंने जयपुर का जीर्णाद्धार कराया और काशी जी में प्रसिद्ध ज्योतिस विद्या का भवन बनवाया था, जो इस संसार में प्रसिद्ध है। जयपुर राज्य को राजधानी जयपुर नगर में जैसे। सुन्दर सुन्दर भवन बने हुए हैं वेसे सुन्दर अन्यत्र नहीं पाये जाते हैं। इसी सुन्दरता के कारण इसे विदेशों में भारत के गुलाबी नगर के नाम से जाना जाता है । कहीं कहीं इसे भारत का विती य पेरिस भी कहते हैं । इस उच्ष वंश की शाखायें राजस्थान में इस प्रकार हैं।1. नरवर के कछवाये-अलवर ठिकाना (या कछवाये) नरूका।
2 . ग्वालियर के कछवाये जयपुर में पाये जाते हैं ।
3. दुव कुन्डा के कछवाये—जो १६ मील दक्षिण-पश्चिम ग्वालियर में पाये जाते हैं ।
4, मनकोटिया कछवाये--मनकोटी के राजा होने से ।
5. जसकोटिया कछवाये-जस कोटि के राजा होने से ।
6. भाऊ—सेमियाल, सल्हथिया, दलपतिया, ताराणिये, चिनासिये, वीरपुरिये और मनहास ।
Kachawa rajput Prshakha:-
झाड़ी जयपुर के कछवाये, जम्बूवाल के कछवाये जम्मु काश्मीर घार के कछवाये, ये सभी नरवर ग्वालियर के वंशज में से हैं.गढ़ अठिया:-इन्द्रा मणि के वंशज हैं, गढ़ अमेठी जिला सुल्तानपुर (उठ० प्रम) में निवास करते हैं ।
विकल पोता:-रामगढ़ आमेर के महाराजा विकल जी के वंशज हैं जो लाहोर, ग्वालियर, रामपुर जिला जालौन
(उ० प्र०) में वास करते हैं ।
कुण्डल:-कुण्डल नगर में वास करने से नाम पड़ा है ।
देहजलोतियह:- कांकल जो के पुत्र देहल जी के वंशधर हैं। जिला ग्वालियर में इनका राज्य था।
डांगो:- ताल चिर--आमेर के राजा विकल जी के ३२ पुत्र थे, उनमें से तीन भाई जगदीशपुरी उड़ीसा में संयोग से बस गये बाबूजी, नर सोजी, भोलोजी। इन लोगों ने जगदीशपुर से लौटते समय जंगली जातियों से युद्ध करके अपना वहीं राज्य स्थापित कर लिया। इन्हीं के वंशधर "ताल चिर" के राजा हैं, इसलिए तालचिर कच्छावा कहलाते हैं ।
जसवन्त:- रजा फिल्हल जी के पुत्र जल राज से शाखा चली है ।
भाखरोल:-राजा कुन्तल जी के वंशधर हैं इनकी शाखायें कन्यावत, टोंगा, सुजपोता, सरवन पोता हैं ।
कमाणी:- आमेर के राजा जणसी कुमानी के वंशज हैं, इन का ठिकाना खोहवास है ।
सिधादेका:-राजा सिन्धजी के वंशज हैं ।
श्योब्रह्मा:- राजा उदयकर्ण के पुत्र श्योब्रह्मा के वंशज हैं। इन का ठिकाना निडर प्रदेश है ।
शेखावत:- राजा उदय कर्ण के पुत्र बालाजी व मोकलजी जो थे । जब इन दोनों के संतान नहीं हुई तो एक दिन मुस्लिम फकीर शेख भान की दुआ से एक पुत्र पैदा हुआ, जिसका नाम शेखा जी था,वह बहुत प्रतापी और वीर था। उक्त नाम के कारण शेखावत संज्ञा हुई। जिसके नाम पर राजपूताने में एक परगना है।
मधपुर के शेखावत:- उक्त ग्राम के नाम से प्रसिद्ध है।
बिहटविरम:- जिला सीतापुर में अवध में उच्च दर्जे के क्षत्रिय हैं।
बांकावत:- भगवानदास जी को वांकाजी की उपाधि थी।
राजा:- दर्शनसिहोत, कल्याणसिहोत, मानसिहोत, शेखावत ठिकाना-झलाया, इस वंश की शाखा व प्रशाखा इतनी ही हैं।
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