Tuesday, 17 July 2018

ओबरिया,घुघेर,निबी,अत्थव राजपूतो का संक्षिप्त इतिहास

ओबरिया राजपूत इतिहास:-

सांभर निवासी मानिकराव के वंशज हनुमान अगर हुए। इनके वंशज वणधीररावजी जो यवनों के अत्याचारों से पीड़ित होकर अपना धर्म बचाने को राजपूताने के सभी सुख त्यागकर अपने स्त्री, पुरुष व कुटुम्बियों को साथ लेकर निकल पड़े। भागते-भागते जौनपुर जिला में ‘औबरी' नामक ग्राम में आकर बस गये। वह इस वजह से ओोवरिया कहलाने लगे । इनका चौहान वंश है गोत्र वत्स है । वेद शाखा चौहान वर्णन में देखें। बगहा ‘बगहा चौहान वंश की एक शाखा है, मोइलों के वंश हाल में इनका वृतान्त स्पष्ट लिखा है । इस "बगहा' खांप के राजसिंह चौहान अपने परिवार सहित प्रतापगढ़ जिला के ग्राम विक्रमपुर में बस गये । इन्होंने यहां आकर नमक का धन्धा किया । बाग में रहने के कारण यह नाम पड़ा है वैसे चौहान शाखा के हैं। गोत्र इनका बत्स है।

निबी राजपूत इतिहास:-

चौहान वंश में "निबी ’ शाखा प्रसिद्ध है। इसी शाखा में अनूपसि" बहप्रतापी ने जन्म लिया था। इनके वंश- धर राव बलवन्तसिंह सांभर नगर छोड़कर विक्रमपुर में रहने के बाद जीविका का निर्वाह न होने के कारण वहीं से भी कूच करने के बाद करनी’ ग्राम में आकर बस गये । चौहान नाम छोड़कर केवल करमैनी बतलाने लगे । तथा विद्या अभाव के कारण आगे चलकर सिर्फ मैंनी अथवा मान भी कहने लगे । और आज तक उसी नाम से कारे जाते हैं। इनकी शाखा चौहान है गोत्र वत्स है । अठभेज्ा यह भी चौहान वंश को प्रसिद्ध शाखा है और अपने प्राचीन नाम से प्रसिद्ध है । इनका वंश चौहान व गोत्र वत्स है ।

घनेश (घुघेर) राजपूत इतिहास:-

धुधेर’ यह चौहान वंश की शाखा है। यह धधेरे नगर में निवास करने के कारण नाम पड़ा है । पुनः मलानी गाँव में निवास किया । यहाँ यवनों के अत्याचारों से पीड़ित होकर धनेश और तसिह अवध में आकर बस गये । कुछ समय बाद यहाँ से भी कूच करके जौनपुर जिले में बस गये। घनेश के वंशज होने के कारण ‘धने श' कहलाये । चौहान वंश है गोन वस है । देवराज उर्फ पीपरताली व कोल्हआ जालौर के १६वें राजा समरजी के दूसरे पुत्र मानसिंह हुए। मानसिंह के पुत्र विजय उपनाम देवराज हुए और इनके ही नाम से यह शाखा प्रसिद्ध हुई। यह चौहानों में एक प्राचीन काल से "मरुदेश" में प्रसिद्ध है देवराज के बंशधर बागराज और भोजराज दोनों भाई यवनों के अत्याचारों से पीड़ित होकर अवध देश प्रतापगढ़ जिला गांव विक्रमपुर में आकर बस गये । थोड़े दिनों के बाद बागराज जाकर पीपरताली गाँव में रहने लगे । यहीं से देवराज पीपरता ली के नाम से पुकारे जाने लगे । और भोजराज ने कोल्हुआ गांव में जाकर निवास किया। यह दोनों चौहान वंश की शाखा हैं। यह एक पिता की सन्तान हैं । गोत्र वत्स है ।

अत्थव राजपूत इतिहास:-

यह भी चौहान वंश की शाखा है । इसका उपनाम हस्त। भी है, कोई इसे आत्थ भी कहते हैं । इनके बंशवर नरपति नाम के चौहान सपरिवार सांभर छोड़कर दक्षिण पूर्व की तरफ भागे । इनको रास्ते में भागा हुआ एक बहुत बड़ा समुदाय मिला, उसी समुदाय में मिलकर अवध प्रदेश के विक्रमपुर में बस गये । कुछ समय उपरान्त विक्रमपुर छोड़कर दूसरी जगह बस कर खेती का काम करने लगे । अज्ञानतावश हत्थावत; हत्थव तथा अत्यंव व हने लगे । यह अपना गोत्र वशिष्ठ बताते हैं ।


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