Saturday, 14 July 2018

राठौड राजपूत इतिहास और वंशावली (rathore rajput history & caste)

Rathore rajput history:-

सूर्य वंश गोत्र गौतम ( राजपूताने में ) तथा पूर्व में (कश्यप) व अत्रि दक्षिण भारत में राठौड़ मानते हैं परन्तु बिहार के राठोड़ों का गोत्र शाडिल्य है।
प्रवर तान:- गौतम, वशिष्ठ, वास्पत्य।
वेद:-         सामवेद।
शाखा:-      कौयुमो
सूत्र:-         गोमिल।
इस वंश का निकास महाराजा श्री रामचन्द्र जी से है । वर्तमान राठौड़ लोग अपने को कुश वंशीय मानते हैं जो श्री रामचन्द्रजी के ज्येष्ठ पुत्र कुश थे इसमें कोई सन्देह नहीं है कि यह सूर्यवंशी नही हैं । जिस के वीरता को शाख सारे भारतवर्ष में है. कन्नोज बसाने वाले कुश के वंशधर राजा हर्षवर्धन बहुत प्रतापी हुए हैं जिनका इतिहास साक्षी है । इसी वंश में बदनाम राजा जयचन्द हुए हैं जो कि मुहम्मद गोरी से हार कर १२०० वीं शताब्दी में गंगाजी में डूब कर मर गये । बाद में इन के पुत्र भागकर सोयाजी दक्षिण की तरफ जाकर बसे, और गोहिलां का खेडवा देश छीनकर सीया जी का बरौदा का निर्माण करके आनी राजधानी बनाया जो कि आज तक प्रसिद्ध है । वर्तमान समय में सोया जी के वंशज कई राज्य हैं जिनका राज्य इस प्रकार है -जोधपुर,बीकानेर, किशनगढ़, ईडर, रतलाम,सीतामऊ, सैलाना आदि रियासत हैं जिनकी ही शाखायें इस प्रकार हैं।

Rathore rajput ki shakha:- 

1. मेडतिया, 2. चन्द्रावत, 3. जगावत, 4.घोल, 5. भदेल- उपशाखा धूप, धूपर, परव, 6. चकित, 7, दुहरिया, 8, खौक़रा. राम देव, 10.मालावत 11. गोंगदेव, 12. जयसीहा, 13. श्रविया (सवीया), 14 जोवसिया, जोरा 15. रापोत 16. सुन्दु, 17. डूदूदिया, 18. कटोच, 19. दगनिरा 20. भुरसिया, 21. बहुरा 22. मुहोली, 23. भदेचा 24. कवरिया, 25. छुवेरा (छुछेला)।
प्राचीन काल में इस वंश को संज्ञा राष्टकुटि थी जो ताम पत्रों, शिलालेखों तथा हस्तलिखित पुस्तकों से प्रतीत होती है । इस बात को राठौड़ वंश के माननीय व्यक्ति मानते हैं कि सूर्यवंश राष्टकुटि संज्ञा से स्थानों के हेर-फेर के कारण पढ़ा।है । इस वंश के विवाह सम्बन्ध प्रसिद्ध क्षत्रिय वंश से ही होते हैं ।




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